Tuesday, March 12, 2013

वर्तमान




यूँ अचानक ही  घूमता है  वक़्त का पहिया
और होती हो तुम, और मैं,
इस समाज से परे
इस जहाँ से दूर।

तब समझाती है मुझे
वर्तमान के अहसास के तमाचे की झनझनाहट

कि धुंधला से गए हैं  यूँ गुजरते वक़्त के साथ
तुम्हारा चेहरा ,
साँसों की महक ,
और हंसी की खिलखिलाहट।।


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