Friday, November 6, 2009

क्यूँ !!?




एक दूर जाने का एहसास क्यूँ ,
नही हो पाई कभी पूरी ये बात क्यूँ ,

नासमझ ,ये दुनिया,
नादान , ये लोग,
मृग-पिपासु, ये मन,
संघर्षमय जीवन,
शायद मैं न समझा , शायद तुम न समझे ,
एक समझौते सी हो गई सारी बात क्यूँ !!

तुझसे दूर रहकर , तेरे साथ चला था ,
मेरे साए से लिपटा, तेरा एहसास चला था ,
आज, चलते हो तुम भी , चलता हूँ मैं भी ,
फिर चलती है हमारे बीच सारी कायनात क्यूँ !!

ख़ामोशी में हमने जो वक्त गुजारा ,
था दूर जब तूफ़ान, कितना करीब था किनारा ,
लग गई थी आँखें,पर जागे  रहे थे दो मन ,
फ़िर पैदा हो गए ये सब हालात क्यूँ !!

खामोश सा वो भय , जो सिर्फ ख्याल ना रहा,
न था कोई जवाब, अनसुलझा फिर क्यूँ ये  सवाल ना रहा,
जिसे कहना चाहा न कभी,
जिसे कह पाये न कभी ,
आख़िर सच हो गई फिर वही बात क्यूँ !!

एक दूर जाने का एहसास क्यूँ ,
नही हो पाई कभी पूरी ये बात क्यूँ !!