Saturday, January 31, 2009

बाईक, मैं और लिम्ब्दी कार्नर

बाईक, मैं और लिम्ब्दी कार्नर
साथ में तुम सभी .

हाथ में चाय
चेहरे पे मुस्कान
और बदन में थकान


फटा हुआ लोअर
पांच दिन की शेव
अनजाने में दी हुई गाली
जेब की कंगाली


वो लड़कियों का झुंड
" आज कल भाव नहीं देता
इसीलिए समोसे खा रही है"
वो ऊंची आवाज़ में गाना
शुरू हो गई महफ़िल
छुपाई थी एक साइकिल


बोरे पर ही सो गया
याद में खो गया
ओए छोटू ! सात स्पेशल,
साला नहीं सुनेगा
अबे ! प्यार से बोल
देख कैसे घूर रहा है .


" एक पल में बीते तीन घंटे"


कभी सोचा है
कितनी श्यामें और हैं बाकी
कहाँ मिलेंगे फिर
आओगे न हर शाम
मिलोगे न हर शाम
कहाँ ?
कोई नहीं है जवाब
सिर्फ अँधेरा !!


नहीं! चिल्लाना नहीं
अभी बाकी है जिंदगी
जी लो इसको अभी
नहीं होंगे यहाँ फिर कभी
बाइक, मैं और लिम्ब्दी कार्नर
साथ में तुम सभी.