Monday, December 10, 2012

तेरा ख़्याल ?

कहीं दूर खड़ा है एक साया
तुम्हारा सा
आँखों में सवालों की किताब लिए
पलकों पे लिए सुबह की गुलाबी ओस की बूँदें ।

होंठ ऐसे कि जैसे हों एक उलझन में
जो मुस्कुराना तो चाहें मगर सिल जाएँ
गालों कि लाली जो बयां कर रही
वो उत्साह तुम्हारा, एक हिरनी के जैसा
और व्याकुलता ऐसी की थम जाए ये पल ।

जी चाहे बढ़ जाऊं मैं
उन भूली सी राहों पे
खोया था मैंने जहाँ एक उमंग के रंग को
वो नकाब जो बना है मेरा हिस्सा
उतार दूं उसको मगर
ये आइना बोले ये ख्याल भी झूठा है
तेरे भीतर है वो सक्ष, जिस से तू रूठा है ।।