Saturday, April 23, 2011

पुनर्जन्म






चिलचिलाती धुप में प्यासा सा मैं
थक कर हाँफ रहा था कि
तेज हवा के साथ बारिश कि ठंडी बूँद 
गिरी जो माथे पर
चौंक गया, कुछ याद आया
पलकें जो भीगी, तो नजर आया

कि कंपकपाती सी
जो सामने खड़ी थी, मुस्कुराती सी
चमक लिए आँखों में 
खोले वो बाहें, उमंगों में लिपटी 
भीगी सी पलकें और वो साड़ी का
पल्लू कुछ अलग सा था
खुले से होठों पे शायद कुछ
शिकायत लिए तुम 
बढ़ रही थी 
कदम दर कदम 
नजदीक लग रही थी ||

और ये बारिश 
एक नुकीले तीर के  जैसी
मेरी आत्मा को भेद रही थी 
मन कि उलझन और सीने के डर ने
यूँ जकड़े थे कदम
और यूँ डगमगाता सा सोच रहा था मैं
कि अब और कितना नीचे गिरुं||

कि अचानक से तुमने जो आगोश में ले लिया
छूट गए सब बंधन
टूट गए सारे सपने
पिघल गया घनी बारिश में तन मेरा
एक लाल सागर में समां रहा है
और मेरी रूह कि खुशबू अब हवा में है||

हाँ, मैं मुक्त हो रहा हूँ
थम गयी है बारिश
तुम्हारा भी कोई निशाँ नहीं है
धुप कि वो चमक कहाँ है
पानी भी है पर प्यास नहीं है
और आँखों में भी 
एक नया खालीपन है
हवा के जैसा हल्का हो गया हूँ
शायद,
यही पुनर्जन्म है ||