सुना क्या तुमने?
मेरी ख्यालों में बसी हुई शिकायत की आहट को
देखा क्या तुमने ?
मेरी आँखों में बुझे अँधेरे को
छुआ क्या तुमने?
मेरी ख़ामोशी में समाये हुए शोर की ठंडक को
पाया क्या तुमने?
उसको जो हमने कहीं खो दिया है
महसूस किया तुमने?
उस स्पर्श को जो कितना अपना सा है
मिला क्या तुमको?
वो सन्देश जो अब भी कहीं मन की गहराइयों में दफ़न है |
लौट आई है क्या?
तुम्हारे होठों पे फिर से वही मुस्कान
तुम्हारी बातों में फिर से वही मासूमियत
तुम्हारी आँखों में फिर वही शरारत
तुम्हारे गालों की लाली |
क्या जी उठा है फिर वही डर?
फिर वही दर्द
वही तड़प
और बेचैनी?
क्या जिंदगी से हो गयी है तुम्हारी सुलह?
फिर से ख़ामोशी से चहकना
कुछ न कहकर
सब कह जाना
क्या फिर से ?
हाँ मैंने सुना
जो तुमने नहीं कहा
क्यूंकि
मैंने भी फिर से
सीख लिया है उड़ना
वो धुन्दले ख्वाब बुनना
वो नगमे फिर से सुनना |
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