पतझड़ की सड़क
हम झूम के चलते थे और संग गुनगुनाते थे...
वो रेत, वो पत्ते, वो धूप और हवाएं |
वो पत्ते जब उगे थे
वो डरे थे सहमे थे,
वो बारिश में झूमे थे
वो हवाओं से लड़े थे,
वो धूप में खिले और
साथ में बढे थे |
वो पतझड़ की सड़क
जिसपे हम बढे थे,
जो पाऊँ से कुचले थे
जो रेत में दबे थे,
वो सिमटे से सिकुड़े से किनारे पड़े थे
वो टूट चुके थे, वो पत्ते झडे थे ||
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