Monday, December 10, 2012

तेरा ख़्याल ?

कहीं दूर खड़ा है एक साया
तुम्हारा सा
आँखों में सवालों की किताब लिए
पलकों पे लिए सुबह की गुलाबी ओस की बूँदें ।

होंठ ऐसे कि जैसे हों एक उलझन में
जो मुस्कुराना तो चाहें मगर सिल जाएँ
गालों कि लाली जो बयां कर रही
वो उत्साह तुम्हारा, एक हिरनी के जैसा
और व्याकुलता ऐसी की थम जाए ये पल ।

जी चाहे बढ़ जाऊं मैं
उन भूली सी राहों पे
खोया था मैंने जहाँ एक उमंग के रंग को
वो नकाब जो बना है मेरा हिस्सा
उतार दूं उसको मगर
ये आइना बोले ये ख्याल भी झूठा है
तेरे भीतर है वो सक्ष, जिस से तू रूठा है ।।





Wednesday, November 21, 2012

टाइम पास

पहेली बुझा रहा हूँ एक आजकल
वो नजरें चुराना उसका
और फिर यूँ ही ज़रा सा झाँक के
आँखों के किनारे से
एक हलकी सी मुस्कान लबों पे ले आना ।।

और ये दिल मेरा
एक फुटबॉल की तरह
कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ
बड़ा ही थकाने वाला है खेल ये ।।

एक मज़ा है बेशक
बेकरारी से भरा हुआ
ख्यालों  में जो डूबा रहता हूँ मैं
ये बेचैनी और बेखयाली का एहसास
यूँ खाली दिन गुजारने से तो कहीं अच्छा है ।।






Wednesday, September 5, 2012

सुन ले


वो अनजान,  बेखबर सा
दुनिया के दस्तूर ना समझे,
वो कुछ हैरान, अलग सा
तेरे तो फरमान ना समझे ।

तू सोचे इस सावन में
हवा ये मदहोश सी क्यूँ है,
वो सोचे इस मदहोशी में
यादों की सौगात सी क्यूँ है।

तू खेले ख़्वाबों में अटखेली
पर जीवन उसको लगे पहेली,
तेरे साथी सुनहरे सपने
कडवी यादें उसकी सहेली।